Friday, May 2

पगली लड़की .....................

अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है
जब दर्द की प्याली रातों में गम आँसू के संग होता है
जब पिछवाडे के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं
जब घडियां टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं हम रोते हैं
जब बार-बार दोहराने में सारी यादें चुक जाती है
जब उंच-नींच दोहराने में माथे की नस दुःख जाती है
तब इक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

जब पोथे खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं
जब गज़लें रास नहीं आती, अफसाने गाली होते हैं
जब बासी, फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है
जब सुरज का लश्कर छत पर गलियों में देर से जाता है
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है
जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है
जब अपना मनचाहा हर काम कोई लाचारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है
जब दर्पण में आखों के नीचे झाँई दिखाई देती है
जब बडकी भाभी कहती है कुछ सेहत का भी ध्यान करो
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर कुछ सपनों का सम्मान करो
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते है घबराते हैं
जब साड़ी पहने लड़की का एक फोटो लाया जाता है
जब भाभी हमें मानती है फोटो दिखलाया जाता है
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

दीदी कहती है उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं
उसके दिल में भइया तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है
चुप चुप सारे व्रत करती है पर मुझसे कभी ना कहती है
जो पगली लड़की कहती है मैं प्यार तुम्हीं से करती हूँ
लेकिन मैं भी मजबूर बहुत अम्मा-बाबा से डरती हूँ
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा
ये कथा कहानी किस्से हैं कुछ भी तो सार नहीं बाबा
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है



Tube Thought:
मुहब्बत में बुरी नियत से कुछ सोचा नहीं जाता
कहा जाता है उसको बेवफा समझा नहीं जाता