Wednesday, November 12

I Am Not Dead Yet....

So 6 months and 10 days after i made my last entry in blogspot...
there is so much to write about.....
things that i never thought will happen in my life...........
some i want to remember forever, some i wish never happened.... and some i wish....
anyway
so what should i write today....
about the past i spent.....?
about the future i m going to....?
about the past i wanted ....?
or about the future i m planning for...
or may be best is about the present i m living in...

homo-sapians generally weep and cry remembering the past, they want to change the way things happened, they want everything different, they want a perfect life (by the way can any one define the perfect life... is it money or bikes or cars or babes or health or peace or .... the list is endless )
anyway where was i.. ya everyone wants a perfect life...
they want a perfect future.. they want everything from future. they always spent their time either while crying for the past or daydreaming for the future...
when u told them you are doing this they will shout at you.
that i m learning from my mistakes, i m gaining lessons.. or i m securing or visioning my future, i m thinking beyond...
but in all this crap the most important thing that they forget is that they are wasting their present (thought they might think that they are investing it)
but after reading this you wont be satisfied .... you will surely like to argue with me...
whatever...
its what i think and hence its here on my blog...

Moral of the story : Past is Gone... Future is Unknown... Live in present as this is a present (gift!!) from HIM...

Enjoy life...

Stay B'ful n Keep Smiling...

Tuesday, July 8

क्या लिखूं ?

कुछ लिखना चाहता हूँ
सोचता हूँ क्या लिखूं ?

फूलोँ की वो महकती खुशबू ,
बारिश का वो भीगा पानी...
और हवा में थी जो रवानी...
क्या उस मौसम का खुमार लिखूं ?

कुछ लिखना चाहता हूँ
सोचता हूँ क्या लिखूं ?

थी चेहरे पर उनके मासूमियत ,
आँखों में थी थोडी शरारत...
और बातों में वो नजाकत...
क्या उनका रंगीन मिजाज लिखूं ?

कुछ लिखना चाहता हूँ
सोचता हूँ क्या लिखूं ?

उसका आकर मुस्कुराना ,
जो रूठ जाउँ तो मानना...
जाते जाते फिर रुलाना...
क्या उनका यह अंदाज़ लिखूं?

कुछ लिखना चाहता हूँ
सोचता हूँ क्या लिखूं?

Friday, May 2

पगली लड़की .....................

अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है
जब दर्द की प्याली रातों में गम आँसू के संग होता है
जब पिछवाडे के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं
जब घडियां टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं हम रोते हैं
जब बार-बार दोहराने में सारी यादें चुक जाती है
जब उंच-नींच दोहराने में माथे की नस दुःख जाती है
तब इक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

जब पोथे खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं
जब गज़लें रास नहीं आती, अफसाने गाली होते हैं
जब बासी, फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है
जब सुरज का लश्कर छत पर गलियों में देर से जाता है
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है
जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है
जब अपना मनचाहा हर काम कोई लाचारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है
जब दर्पण में आखों के नीचे झाँई दिखाई देती है
जब बडकी भाभी कहती है कुछ सेहत का भी ध्यान करो
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर कुछ सपनों का सम्मान करो
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते है घबराते हैं
जब साड़ी पहने लड़की का एक फोटो लाया जाता है
जब भाभी हमें मानती है फोटो दिखलाया जाता है
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है
तब इक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

दीदी कहती है उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं
उसके दिल में भइया तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है
चुप चुप सारे व्रत करती है पर मुझसे कभी ना कहती है
जो पगली लड़की कहती है मैं प्यार तुम्हीं से करती हूँ
लेकिन मैं भी मजबूर बहुत अम्मा-बाबा से डरती हूँ
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा
ये कथा कहानी किस्से हैं कुछ भी तो सार नहीं बाबा
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है



Tube Thought:
मुहब्बत में बुरी नियत से कुछ सोचा नहीं जाता
कहा जाता है उसको बेवफा समझा नहीं जाता

Thursday, April 24

एहसास

किसी को नज़र भर देखने का
किसी को ख्वाबों में निहारने का
किसी को छूने का
किसी से दो पल बात करने का
एहसास है अरमानों का

किसी को दिल में रखने का
किसी के स्पर्श को पाने का
किसी के हमसफ़र बनने का
किसी पर ऐतबार करने का
एहसास है प्यार का

किसी को खून से सींचने का
किसी को लोरियां सुनाने का
किसी से माँ कहलवाने का
किसी पर मातृत्व लुटाने का
एहसास है ममता का, एक माँ का

किसी पर नाराज़ होने का
किसी पर रूठने का
किसी से बेवजह शिकायत करने का
किसी के नाजों को उठाने का
एहसास है अभिमान का

किसी के सामने न झुकने का
अपने निश्चय पर अटल रहने का
हमेशा सच्चाई के साथ देने का
अपने उसूलों को अहम् समझने का
एहसास है स्वाभिमान का

कभी प्यार, कभी क्रोध, कभी प्रेम, कभी शोध
कभी नाराज़गी पर लगता अवरोध
कभी ममता, कभी दृढ़ता, कभी मिथ्या, कभी सात्विकता,
है आकाश सा फैला चादर,
एक शब्द एहसास का.

Tuesday, February 19

याद ......

याद है......
जब भी देखा करता था तुम्हे,
नम आंखों में

मैं बहकी बहकी सी बातें करता था |
मुस्कुराता हुआ...
यह सोच कर,
की मुझे खुश देख कर
शायद तुम भी खुश हो जाओ |
मगर..
तुम्हे हमेशा यह शिकायत रही,
की मुझे तुम्हारा कोई ग़म नहीं |


अब....
जब तुम नहीं हो,
आंखों में आंसू लिए,
यह सोचता हूँ |
शायद तुम आओ फिर से
जब तक की
मेरे आंसू सूख चुके होंगे |
और
जब तुम्हे देख कर मैं मुस्कुराऊंगा,
तुम्हे फिर यह शिकायत होगी की,
मुझे तुम्हारा कोई ग़म नहीं !

Monday, February 4

माँ


ईश्वर कुछ गढ रहे थे |
एक अप्सरा वहाँ से गुजरी और उसने ईश्वर से पूछा - "ये आप क्या बना रहे हैं?
मैं आपको इतने दिनों से लगातार काम करते हुए देख़ रही हूँ |"
ईश्वर ने जवाब दिया "मैं माँ को गढ रहा हूँ |"
अप्सरा की जिज्ञासा थी - "कैसी बनानी है |"
ईश्वर ने उत्तर दिया -
"जिसकी कोख़ से मानवता जन्मे, जिसकी गोद में सृष्टि समा जाए,
जिसका स्पर्श बडी से बडी चोट को सहलाकर ठीक कर दे, जिसका दुलार बडे से बडे सदमे से उबार दे,
जिसके दो हाथ सबको दिख़ें पर हो कई, ताकि जीवन सवाँरने का उसका कर्तव्य बिना किसी बाधा के पूरा हो सके,
जिसके मन में भी आँख़ें हो जिससे वो दूर बैठी संतान को देख़ सके,
जो बिमार होने पर भी 10 लोगों वाले परिवार के लिये हँसकर भोजन बना सके,
नाजुक हो, पर हर मुश्किल को हरा सकने का दम रख़े,
जिसके आंचल तले सृष्टि को सुरक्षा मिले,
जिसके नैत्रों में अपने बच्चों के लिये भाव-भरा जल हो और उनके शत्रुओं के लिये ज्वाला,
जिसके दर्शन मात्र से मानवता कृत-कृत हो,
मैं उसे गढ रहा हूँ, जिसे मानव ठेस तो बहुत पहुँचाएगा, पर उसका हाथ न आशीर्वाद देने से रुकेगा और न दिल दुआ माँगने से
मैं अपना प्रतिरूप गढ रहा हूँ |"

ईश्वर प्रतिरूप को नमन
माँ को नमन
हे जगत् जननी तुझे प्रणाम