Monday, February 4

माँ


ईश्वर कुछ गढ रहे थे |
एक अप्सरा वहाँ से गुजरी और उसने ईश्वर से पूछा - "ये आप क्या बना रहे हैं?
मैं आपको इतने दिनों से लगातार काम करते हुए देख़ रही हूँ |"
ईश्वर ने जवाब दिया "मैं माँ को गढ रहा हूँ |"
अप्सरा की जिज्ञासा थी - "कैसी बनानी है |"
ईश्वर ने उत्तर दिया -
"जिसकी कोख़ से मानवता जन्मे, जिसकी गोद में सृष्टि समा जाए,
जिसका स्पर्श बडी से बडी चोट को सहलाकर ठीक कर दे, जिसका दुलार बडे से बडे सदमे से उबार दे,
जिसके दो हाथ सबको दिख़ें पर हो कई, ताकि जीवन सवाँरने का उसका कर्तव्य बिना किसी बाधा के पूरा हो सके,
जिसके मन में भी आँख़ें हो जिससे वो दूर बैठी संतान को देख़ सके,
जो बिमार होने पर भी 10 लोगों वाले परिवार के लिये हँसकर भोजन बना सके,
नाजुक हो, पर हर मुश्किल को हरा सकने का दम रख़े,
जिसके आंचल तले सृष्टि को सुरक्षा मिले,
जिसके नैत्रों में अपने बच्चों के लिये भाव-भरा जल हो और उनके शत्रुओं के लिये ज्वाला,
जिसके दर्शन मात्र से मानवता कृत-कृत हो,
मैं उसे गढ रहा हूँ, जिसे मानव ठेस तो बहुत पहुँचाएगा, पर उसका हाथ न आशीर्वाद देने से रुकेगा और न दिल दुआ माँगने से
मैं अपना प्रतिरूप गढ रहा हूँ |"

ईश्वर प्रतिरूप को नमन
माँ को नमन
हे जगत् जननी तुझे प्रणाम

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